Sunday, September 6, 2009

शक शुबा मिटाना ही होगा

भारतीय थलसेना के पूर्व अध्यक्ष जनरल वी.पी. मलिक की सेना को परमाणु क्षमता के बारे में फिर से आश्वस्त करने की मांग जायज ही लगती है। एक पूर्व वैज्ञानिक के वर्ष 1998 के परमाणु परीक्षणों के नतीजों पर सवाल खड़ा करने के बाद तो यह और भी जरूरी हो गया है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के पूर्व वैज्ञानिक के.संथानम की ओर से 11 मई 1998 को हुए परीक्षणों को विफल बताए जाने के बाद सेना प्रमुख होने के नाते मलिक की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। कही ऐसा न हो कि खुदा न खास्ता जरूरत पडऩे पर परमाणु हथियार दगा दे जाएं।मलिक ने पूर्व रक्षा वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे.अब्दुल कलाम की बहस को अनावश्यक करार देते हुए वैज्ञानिकों को इस विवाद को स्पष्ट करने के लिए आगे आने को कहा। इतना ही नहीं उन्होंने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की टिप्पणी को एक राजनीतिक बयान करार देकर दिखा दिया है कि इस मामले में राजनीतिज्ञ कुछ न बोले तो बेहतर है। अब सवाल यह है कि क्या देश के नेता फौजियों और देशवासियों का मनोबल बनाए रखने के लिए एक और परमाणु परीक्षण करने का साहस जुटा पाएंगे।

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