यूं टोटकों के बारे में हर आम-ओ-खास को जानकारी रहती है। हर कोई बचना चाहता है इनसे। न जाने क्या अला बला पीछे लग जाए। खासकर चौराहों पर तो बड़े ध्यान से निकलना पड़ता है। उस पर रात हो तो ये टोटके किसी भूत पिशाच से कम नहीं लगते। दूर से नजर पड़ जाए तो रास्ता बदल लेने से गुरेज नहीं करते लोग। बहरहाल हम यहां टोटकों का परिचय कराने के मूड में नहीं हैं। हम तो बस इतना बताना चाहते हैं टोटके औरों के लिए भले ही बुरे-भले होते हो लेकिन हमारे लिए तो कड़की के दिनों में बड़े लाभकारी साबित हुए हैं।टोटके लाभकारी कैसे बने इसकी दास्तां भी कुछ कम रोचक नहीं हैं। हमें यह नुस्खा करीब दस-बार साल पहले विरासत में मिला था। लिहाजा इसे आगे बढ़ाने का प्रयास भर कर रहे हैं। बात तब कि है जब हम कॉलेज के दिनों में पढ़ाई के साथ-साथ एक ट्रेडिल पर छपने वाले वाले छोटे से अखबार के लिए भी काम किया करते थे। तनख्वाह के नाम पर कभी कभार बख्शीस की तरह जेब खर्च मिल जाया करता था। ऐसा नहीं है कि सीनियर्स कोई मोटी तनख्वाह पाते हों, उनकी भी हालत काम चलाऊ से ज्यादा हमे कभी नजर नहीं आई। हमेशा की तरह गर्मी की एक रात सीनियर्स गपशप में मशगूल थे। तभी किसी ने शिकंजी की बात छेड़ दी। बात-बात में सभी का मन हो आया कि आज शिकंजी ही पिएंगे। रात के बारह बज रहे हैं ऐसे में शिकंजी कहां मिलने वाली। तभी हमें एक सीनियर साथी ने कहा जाओ जरा आस-पास के चौराहों का फेरा लगा आओ। देखना कहीं टोटके रखे हो तो उलट पलट कर उन्हें देख लेना। एकआध नींबू तो मिल ही जाएगा। टोटके का नाम सुनते ही हमारे रोंगटे खड़े हो गए। पर क्या करें बड़ों का आदेश मानना ही था, एक और जूनियर साथ को साथ लेकर चल दिए टोटकों की खोज में। पहले एक चौराहे पहुंचे, टोटके को देखते ही घिग्घी बंध गई। जैसे तैसे टोटके को टटोला तो उसमें लाल कपड़े में बंधे दो नींबू साथ ही सवा रुपए भी मिल गए। लौटे तो सीनियर्स ने पूछा नींबू लाए हो। हमारा जवाब हां में था। उन्होंने नींबू निचोड़े और शिकंजी तैयार। बस उस दिन की घटना ने हमारे भाग्य जगा दिए। गर्मी में रात बिरात कभी शिकंजी की जरूरत हो तो चौराहे सलामत। चाय के लिए जेब में चव्वनी न हो तो चौराहों का फेरा।
Friday, September 11, 2009
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