Saturday, September 19, 2009

मेरा बेटा भी बहुत शरारती है

बच्चों की शरारत पर बड़ों का खफा होना लाजमी है। लेकिन इसके साथ बड़ों को यह भी सोचना होगा कि वे बड़े हैं इसलिए उन्हें खफा होने का यह अधिकार नहीं मिल गया। बच्चों की छोटी-बड़ी बातों पर हाथ उठा देना, डांटना या अन्य कोई सजा देना किसी भी लिहाज से उचित नहीं। बच्चे जो कुछ भी करते हैं वह उनकी तात्कालिक परिस्थिति, अर्जित ज्ञान व अधिकार पर निर्भर करता है। इसे लिए एक उदाहरण हैं... कई बार घर में मेहमान आए हुए हों, आप उनसे बात में व्यस्त रहें, इसी बीच बच्चा कोई सवाल बार-बार आपसे कर रहा है तो खीज आना स्वाभाविक है। लेकिन तब आप यह भूल जाते हैं कि बच्चे के लिए मेहमानों का आना उतना विशेष नहीं होता जितना आपके लिए। लिहाजा बदलना आपको होगा। बच्चा जिस अधिकार के साथ आपके पास आता है उसी जिम्मेदारी के साथ उसकी बात का जवाब देना जरूरी है। चाहे इसके लिए कुछ पल मेहमानों पर से ध्यान हटाना ही क्यों न पड़े। इसी तरह कई बार आप कोई फिल्म देख रहे हों उसी दौरान बच्चा शोर कर रहा हो तो उसे डांटे नहीं। उसे नहीं मालूम की फिल्म कोई मनोरंजन की चीज है। उसे तो शोर करने में ही ज्यादा मनोरंजन का अहसास हो रहा होता है। इस हालात में सेक्रीफाइज आपको ही करना है। न कि बच्चे को डांट कर दबाने का प्रयास करें। समय-समय पर बच्चों की स्कूलिंग के जरिए ही हम उनके आचार-व्यवहार में बदलाव ला सकते हैं, उसे समझा सकते हैं। कोई जोर आजमाईश करने से बच्चा जिद्दी हो सकता है। इसलिए बच्चों की मनावृत्ति को समझे, पढ़े, जाने और उसके अनुरूप ही कदम उठाए। यह मेरा सुझाव है। क्योंकि मैं भी एक पिता हूं। मेरा नन्हा बेटा भी बहुत शरारती है।

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