Thursday, September 10, 2009

दिल्ली के रामलीला वालों से हमदर्दी

दिल वालों की दिल्ली में बीते कई दिनों से रामलीला को लेकर महाभारत मची है। रामलीला के जरिए खाने कमाने वालों और दर्शकों का दर्द यह है कि दिल्ली सरकार ने नवरात्रा के दौरान होने वाली रामलीला मंचन का समय घटाकर रात दस बजे तक तय कर दिया। अब वे हमेशा की तरह रात के बारह बजे तक इसका आनंद नहीं उठा सकते। रामलीला का समय कम करने का तुगलकी फरमान दिल्ली पुलिस की सलाह पर ही राज्य सरकार ने जारी किया है ऐसा सरकार ने भी माना है। दीगर बात यह है कि कानून व्यवस्था बनाए रखने नाम पर रामलीला को दायरे में लाना रामलीला वालों को रास नहीं आ रहा। उनका तर्क भी जायज है। रामलीला कोई का घटनाक्रम कोई एडिट कर मंचित करने की चीज नहीं जिसके प्रसंग घटा दिए जाएं। नवरात्रा के निर्धारित दिनों में इसके समय में कटौती किए जाने से तय अवधि में इसका पूर्ण मंचन हो पाना संभव नहीं। ऐसे में रामलीला के दौरान या तो रावण वध नहीं हो पाएगा या फिर राम अयोध्या नहीं लौट पाएंगे।
भई हमें तो दिल्ली की कांग्रेस सरकार के नए फरमान में भी राजनीति की बू आने लगी है। सत्ता पर काबिज सरकार शायद यह नहीं चाहती की रामलीला के नाम पर लोग राम को याद करें। राम का नाम पूरे नौ दिन तक लोगों की जुबां पर होगा तो इसका लाभ प्रतिपक्षी पार्टी को मिलता है। इससे राजनीतिक वातावरण में राम समर्थकों की पार्टी की रेंटिंग बढ़ जाती है। प्रतिपक्षी पार्टी के नेता फीता काटने के बहाने ही अपना जनाधार बढ़ाने के लिए वहां पहुंच जाते हैं। यह स्थिति सत्ताधारी पार्टी के लिए किसी हाजमा खराब करने से कम नहीं होती। उसका बस चलता तो वह तो पूरी रामलीला ही प्रतिबंधित कर देती। यानी कि न रहे बांस न बजे बांसुरी। संभल जाओ रामलीला वालों! अभी पहला तीर चला है। आगे-आगे देखो होता है क्या। दिल्ली वालों मुझे आपसे से पूरी हमदर्दी है। हो भी क्यो नहीं, जीवन के करीब 18 महीने मैने भी दिल्ली में बिताए हैं। मेरे योग्य सेवा हो तो बताना। रामजी आपकी भली करें।

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