Wednesday, September 16, 2009
मैं गांधी तो नहीं
'करे कोई भरे कोई' सांसारिक जीवन में इस हालात से हर वह शख्स गुजरा होगा जिसने सदैव दूसरों के प्रति सहृदता रखी होगी। बाद में परिणामों ने आईना भी दिखा दिया होगा कि उसने कितनी बड़ी भूल की। लेकिन आदमी की फितरत को बदला नहीं जा सकता। इसी सहृयता के एक बुरे परिणाम से हाल ही मेरा भी सामना हो गया। यूं कह सकते हैं दूध से जल गया अब छाछ भी फूंक-फंूक कर पीने को जी चाहता है। सहृदता छोड़ पाऊंगा इस बारे में अभी कुछ नहीं कह सकता। लेकिन मैं गांधी भी नहीं कि कोई गाल पर एक थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल उसके सामने कर दें। गांधीजी वाकई बड़े दिल वाले थे। काश मेरा दिल भी उतना बड़ा हो जाए। बहरहाल जिस गलती के चलते मुझे जिल्लत उठानी पड़ी उसके लिए मैं स्वयं को कतई जिम्मेदार नहीं मानता, खुद गलत नहीं था, बस यही बात मेरा मनोबल बनाए हुए हैं। काश मैं हनुमान होता तो दिल चीर कर दिखा देता।
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