ईश्वर को लेकर इस सांसारिक जगत में लोगों के अपने निजी अनुभव, विचार, मत, दावे व सोच है। मैने भी इस सत्य को जानने का प्रयास किया। कितना सफल हो सका यह मै खुद नहीं जानता। प्रयास जारी है। ईश्वर के बारे में चर्चा के दौरान ही एक बार एक शख्स ने मुझे एक रामबाण औषधि रूपी बात कह दी। वह बात सभी तक पहुंचाने की जिज्ञासा बनी रहती है। इसी क्रम में आज आप लोगों को भी बता दूं कि वह रामबाण क्या था। यानी ईश्वर पर उस तरह विश्वास करो जिस तरह एक अबोध बालक मां पर करता है। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। तीसरी मंजिल की छत से एक मां अपने नवजात को हाथ से पकड़ कर नीचे की ओर लटकाए हुए थी। आप और हम को यदि कोई इससे भी कम ऊंचाई से नीचे झांकनेभर को कह दे तो शरीर में सिरहन दौड़ जाती है। लेकिन वह नवजात नीचे लटके हुए भी मुस्कुराता रहता है। उसे नीचे गिरने का खौफ नहीं होता। उसे विश्वास है मां के चलते मुझे कोई डर नहीं। ठीक उसी तरह ईश्वर पर विश्वास करो। हर भय, राग, द्वेष मिट जाएगा। उसकी सत्ता को माने या ना माने लेकिन उसके होने का अहसास भर भी हमें इस सांसारिक जगत में उत्तम व वैभवपूर्ण जीवन बिताने में सहायक सिद्ध होगा। अब बात यह आती है कि ईश्वर के प्रति लगन कैसे लगाई जाए तो इसके लिए उसी भद्र व्यक्ति का दिया फार्मूला आपके बीच बांटना चाहता हूं जो इस तरह है।
'हे परमपिता, यद्यपि मैने आज तक आपको पुस्तकों, संतों एवं शास्त्रों तथा वचनों के माध्यम से जाना है, किन्तु आपकी व्यक्तिगत अनुभूति नहीं की। मेरे मन की अभिलाषा है कि आपको आपके वास्तविक रूप में अनुभूत कर सकूं। हे पिता शीघ्र ही मुझे अनुभूति कराएं।'
Saturday, September 12, 2009
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