हमें क्या पता था कि छींकना इतना भारी पड़ जाएगा। अपने ही घर परिवार में अछूत हो गए। पता होता तो इस ना मुराद छींक का आने से पहले दम घोंट डालते। खैर अब जो हुआ सो हुआ। अब करें भी तो क्या। चुपचाप नकाबपोशों की तरह मुंह पर कपड़ा बांधे घर में ही पड़े हैं। न हम भादों की बारिश में भीगने का मजा लेते न जुकाम होता और न फिर छींक ही आती। कोई हमारी सुनने को तैयार नहीं। बस आ गए शक के दायरे में हम भी। मुआ यह स्वाइन फ्लू बिना हुए ही हमारी जान लेने को उतारू है। घर अब घर नहीं किसी बंगाली डाक्टर का दवाखाना हो गया। जिसे देखो हमें कोई न कोई नुस्खा दे जाता है। क्या बताए सात फेरे लेकर सात जनम तक साथ निभाने का वचन देने वाली पत्नी भी सुनने को तैयार नहीं। कहती है पहले ठीक हो जाओ फिर बात करेंगे। जुल्म की हद तो तब हो गई जब उसने बेडरूम की जगह बाथरूम के बाहर खाली पड़े बरामदे में खटिया डाल दी। स्वाइन फ्लू के भूत का भय हर आम-ओ-खास को परेशान किए हुए है। वहीं मुन्ना की तो पौ बारह हो गई है। वह बीते चार दिन से घर में धमाल मचाए हुए है। उसे नहीं पता स्वाइन फ्लू क्या होता है वह तो बस इतना जानता है स्वाइन फ्लू वह कीड़ा (वायरस) है जो स्कूल की छुट्टी करा देता है। यह कीड़ा हमेशा रहना चाहिए।
Saturday, September 5, 2009
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