Saturday, September 5, 2009

अमृतमयी बूंद.....


पानी की हर एक बूंद जीवन के समान ही तो है। एक बूंद से अंकुरित हो जाता है बीज। मुरझाई वनस्पति में फुंक जाती है जान। मरुभूमि के प्यासे होठों को जीवन का अहसास करा जाती है बूंद। बूंद-बूंद से ही तो भरता है गागर और सागर। इसे सहेजने से संवरेगी यह धरा, जीवन होगा दीर्घकालिक। नभ में बादलों के घिरते ही नाच उठता है मयूर, सुनाई पडऩे लगती है कोयल की कूक। गूंजने लगता है पक्षियों का कलरव। फिर हम क्यों पड़े रहना चाहते हैं निश्चेतनावस्था में। देखो! जल की मोती सी चमकती एक बंूद ठहर गई है घास की कोर पर। धरती में समा जाने से पहले कर रही है अठखेलियां। आओ हम सब प्रकृति की दयालुता का आनंद उठाएं। देखो बदरा घिर आए हैं। शीतल बयार भी चलने लगी। आओ मिलकर भीगने का लुत्फ उठाएं, यह पल यह क्षण छूट न जाए। :विजय सिंह

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