Monday, October 12, 2009

हम क्या कर रहे नहीं पता

यह बात सुनने में भले ही अजीब लगे कि दुनिया क्या कर रही है भारत में रहने वाले भद्र लोगों को पता है, लेकिन कोई उनसे जरा यह पूछ ले कि भारत क्या कर रहा है तो वे बगलें झाकने लगेंगे। कोई ज्यादा समझदार हुआ तो अनर्गल तर्क कर खुद को सही साबित करने से बाज नहीं आएगा। यहा बात घर-गृहस्थी की नहीं हो रही। मामला सीधे तौर पर राष्टï्रीय अस्मिता से जुड़ा हुआ है। देश कि सुरक्षा, आतंकवाद, विश्व व्यापार, विदेश नीती, परमाणु प्रसार सरीखे अनेक मसले बीते कई साल से अबूझ पहेली बने हुए हैं। देश में शासन कर चुकी और शासन कर रही वर्तमान सरकार तक इन मसलों पर कुंडली मारे हुए है। कोई इन मामलों पर सीधी सट्टï बात नहीं करता। इन मसलों पर यदा कदा आने वाले बयान सटीक कम और भरमाने वाले ज्यादा होते हैं। दुखद पहलू तो यह है कि आतंकवाद पर अमरीका क्या कर रहा है, पाकिस्तान को क्या करना चाहिए, चीन से कोई परेशानी नहीं, सब ठीक है सरीखे वक्तव्य जारी कर भारतीय राजनेता व सत्ताधारी दल यह जताने का जतन करने से नहीं चूकते कि वे सजग और सक्रिय हैं। कोई यह बताने का दुस्साहस नहीं करता कि इन सब मसलों पर भारत का एजेंडा क्या है। भारत क्या कर रहा है। भारत क्या करेगा। आज भारतीय जनता यहां के राजनेताओं के विश्व संबंधी सामान्य ज्ञान जानने नहीं बल्कि सच्चाई जानने को व्याकुल हैं। दुख तब होता है जब नेता देश में कुछ और और विदेश में जाकर कुछ और ही बयान देते हैं। यहा हमारी नीतियों को मजबूत बताते हुए शेर की सी दहाड़ निकालते हैं और बाहर जाते ही टें बोल जाते हैं। जरूरत पडऩे पर भी अमरीका व चीन के खिलाफ बोलने से कन्नी काटना, पाकिस्तान से आतंकवाद मसले पर दो टूक बात का माद्दा नहीं होना हमारे राजनेताओं को कटघरे में खड़ा कर रहा है। राजनेताओं की यही नपुंसकता हमें मानसिक गुलामी की ओर ले जाती दिख रही है।

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