Friday, October 9, 2009
यह नोबेल पुरस्कार बला क्या है
हमारे बराक भैया को विश्व में शांति के प्रयासों के बदले शांति का नोबेल पुरस्कार मिलने की घोषणा क्या हुई समूचे विश्व में भूचाल सा आ गया। कुछेक को छोड़ दो तो सभी उन्हें नोबेल से नवाजे जाने की आलोचना करने में जुट गए। अरे हम कहते हैं गर किसी और में दम था तो वो लेकर दिखा देता नोबेल। किसी ने रोड़े थोड़े न अटकाए थे। भैया को मिल गया तो भाई लोगों के पेट में मरोड़ उठने लगे। मान लिया कि अभी भैया पूरे विश्व में शांति स्थापित करने में रत्ती भर भी सफल न हुए हों, पर उन्होंने सपना तो देख ही लिया है। आज नहीं तो कल उधमियों को शांत कर देंगे। वे तो साफ सुथरे कूटनीतिक हैं। ठीक उसी तर्ज पर काम करते हैं गरीब नहीं गरीबी हटा दो, यानी जहां जहां अशांति हों वहां अमरीकी सेना भेज कर अशांति फैलाने वालों को नामोनिशान मिटा दो। वे ऐसा कर भी रहें हैं। चा हे इरान का मसला हो या अफगानिस्तान का, पाकिस्तान में तालिबान हो या इजराइल में फिलस्तीन के आतंक का, हर जगह तो फांस बनकर चुभ रहे हैं हमारे बराक भैया। माफ करना हमारे पुरखे कह गए हैं कि गेंहू के साथ घुन तो पिसते ही हैं ऐसे में शांति लाने के प्रयास में यदि थोड़ी बहुत अशांति करनी पड़े तो इसमें कोई बुराई नहीं। फिर भी किसी में दम है तो भैया से नजर मिलाकर बोले कि उन्हें नोबेल पुरस्कार लेने का हक नहीं। सामने आने पर खुद बोलने वालों की घिग्घी बंध जाएगी। और फिर भैया ने तो नहीं कहा था कि उन्हें नोबेल चाहिए, खुद ही देने वाले बांट गए तो वे क्या करें। उन्हें तो खुद सुबह उस समय पता चला जब वे सोकर उठे। पीए ने बताया था साहब आपको नोबेल पुरस्कार मिला है। बाद में पता करवाया कि यह नोबेल पुरस्कार बला क्या है।
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