Saturday, October 31, 2009

धमाकों के धुंए से बदरंग हुई गुलाबी नगरी

देखते ही देखते गुलाबी नगरी का रंग बदल कर कालीमा सा हो गया। धुंए के गुबार ने नील गगन को ढांप लिया। शाम ढल चुकी थी, अंधियारे में सिर्फ धधकते शोले ही अहसास करा रहे थे कि कुछ अनहोनी हुई है। रफ्ता-रफ्ता हर तरफ खबर फैल गई। न केवल अनहोनी हो चुकी थी, बल्कि उसके विकराल रूप से भी सामना हो गया। धमाके दर धमाकों की गूंज ने करीब शहर के दस किलोमीटर तक के इलाके के गूंजा दिया। जहां धमाके हुए वहां के हालात की थाह पाना अब तक किसी के बस में नहीं। महज कयास के आधार पर बयानबाजी हो रही है। आज रविवार है सीतापुरा स्थित आईओसी के ऑयल टर्मिनल में गुरुवार शाम को लगी आग अब भी धधक रही है। कब तक ये शोले उठते रहेंगे इसका हर अनुमान बेमानी साबित हुआ। धू-धू कर जलते ऑयल टैंक से निकल रही ज्वाला और धुंए का गुबार बयां कर रहे हैं कि आने वाले बारह घंटे और दहशत भरे होंगे।गुरुवार को अचानक आईओसी के ऑयल डिपो में आग लग गई। देखते ही देखते धमाकों की गूंज सुनाई देने पड़ी। डिपो के भीतर के हालात तो भीतर रह गए लोगों के साथ ही फना हो गए। डिपो के बाहर करीब तीन किलोमीटर तक की परिधि के आवासीय क्षेत्र में रह रहे लोगों ने जैसे-तैसे जान बचाई। लोग बस दौड़ते गए। पता तक नहीं चला कि कितने किलोमीटर दूर निकल आए हैं। थक कर गिरने लगे तब कही जाकर रुके उनके कदम। यह सब वाकया चंद पलों में घटित हुआ। लेकिन इसके बाद धधक रही आग अब भी विकराल रूप लिए हुए है। ऑयल डिपो के 11 टैंकों में से सात का ऑयल खत्म होने पर आग भले ही थमने की ओर है पर चार टैंक अब भी ज्वालामुखी की तरह आग के गोले उगल रहे हैं। हां, शहर के हालात जरूर सामान्य हुए हैं। लेकिन जिनका घर-बार तबाह हो गया वे मुफलिस की तरह या तो सड़क किनारे पड़े हैं या कही आसारा लिए हुए हैं।

Friday, October 23, 2009

प्लीज मुझे इन सवालों के जवाब दें

1. लोग मरने के लिए ट्रेन के आगे ही छलांग क्यो लगाते हैं। ट्रक या बस के आगे क्यूं नहीं लगाते।
2. लोग मरने के लिए विषाक्त पदार्थ या जहर ही क्यों खाते हैं मिठाई क्यो नहीं खाते।
3. लोग दूसरों का बुरा करने के लिए गलत तरीका ही क्यों अपनाते हैं प्रेम से क्यों नहीं मारते।
4. धरती पर भगवान को पाने की लालसा होती है तो लोग स्वर्ग से नीचे ही क्यों आते हैं।
5. किसी ऐसे शख्स का नाम बताएं जो स्वर्ग की बजाय नरक गया हो।
6. किसी ऐसे प्राणी का नाम बताएं जो मौत से कभी न घबराता हो।
सादर...यमदूत

Monday, October 12, 2009

हम क्या कर रहे नहीं पता

यह बात सुनने में भले ही अजीब लगे कि दुनिया क्या कर रही है भारत में रहने वाले भद्र लोगों को पता है, लेकिन कोई उनसे जरा यह पूछ ले कि भारत क्या कर रहा है तो वे बगलें झाकने लगेंगे। कोई ज्यादा समझदार हुआ तो अनर्गल तर्क कर खुद को सही साबित करने से बाज नहीं आएगा। यहा बात घर-गृहस्थी की नहीं हो रही। मामला सीधे तौर पर राष्टï्रीय अस्मिता से जुड़ा हुआ है। देश कि सुरक्षा, आतंकवाद, विश्व व्यापार, विदेश नीती, परमाणु प्रसार सरीखे अनेक मसले बीते कई साल से अबूझ पहेली बने हुए हैं। देश में शासन कर चुकी और शासन कर रही वर्तमान सरकार तक इन मसलों पर कुंडली मारे हुए है। कोई इन मामलों पर सीधी सट्टï बात नहीं करता। इन मसलों पर यदा कदा आने वाले बयान सटीक कम और भरमाने वाले ज्यादा होते हैं। दुखद पहलू तो यह है कि आतंकवाद पर अमरीका क्या कर रहा है, पाकिस्तान को क्या करना चाहिए, चीन से कोई परेशानी नहीं, सब ठीक है सरीखे वक्तव्य जारी कर भारतीय राजनेता व सत्ताधारी दल यह जताने का जतन करने से नहीं चूकते कि वे सजग और सक्रिय हैं। कोई यह बताने का दुस्साहस नहीं करता कि इन सब मसलों पर भारत का एजेंडा क्या है। भारत क्या कर रहा है। भारत क्या करेगा। आज भारतीय जनता यहां के राजनेताओं के विश्व संबंधी सामान्य ज्ञान जानने नहीं बल्कि सच्चाई जानने को व्याकुल हैं। दुख तब होता है जब नेता देश में कुछ और और विदेश में जाकर कुछ और ही बयान देते हैं। यहा हमारी नीतियों को मजबूत बताते हुए शेर की सी दहाड़ निकालते हैं और बाहर जाते ही टें बोल जाते हैं। जरूरत पडऩे पर भी अमरीका व चीन के खिलाफ बोलने से कन्नी काटना, पाकिस्तान से आतंकवाद मसले पर दो टूक बात का माद्दा नहीं होना हमारे राजनेताओं को कटघरे में खड़ा कर रहा है। राजनेताओं की यही नपुंसकता हमें मानसिक गुलामी की ओर ले जाती दिख रही है।

Friday, October 9, 2009

यह नोबेल पुरस्कार बला क्या है

हमारे बराक भैया को विश्व में शांति के प्रयासों के बदले शांति का नोबेल पुरस्कार मिलने की घोषणा क्या हुई समूचे विश्व में भूचाल सा आ गया। कुछेक को छोड़ दो तो सभी उन्हें नोबेल से नवाजे जाने की आलोचना करने में जुट गए। अरे हम कहते हैं गर किसी और में दम था तो वो लेकर दिखा देता नोबेल। किसी ने रोड़े थोड़े न अटकाए थे। भैया को मिल गया तो भाई लोगों के पेट में मरोड़ उठने लगे। मान लिया कि अभी भैया पूरे विश्व में शांति स्थापित करने में रत्ती भर भी सफल न हुए हों, पर उन्होंने सपना तो देख ही लिया है। आज नहीं तो कल उधमियों को शांत कर देंगे। वे तो साफ सुथरे कूटनीतिक हैं। ठीक उसी तर्ज पर काम करते हैं गरीब नहीं गरीबी हटा दो, यानी जहां जहां अशांति हों वहां अमरीकी सेना भेज कर अशांति फैलाने वालों को नामोनिशान मिटा दो। वे ऐसा कर भी रहें हैं। चा हे इरान का मसला हो या अफगानिस्तान का, पाकिस्तान में तालिबान हो या इजराइल में फिलस्तीन के आतंक का, हर जगह तो फांस बनकर चुभ रहे हैं हमारे बराक भैया। माफ करना हमारे पुरखे कह गए हैं कि गेंहू के साथ घुन तो पिसते ही हैं ऐसे में शांति लाने के प्रयास में यदि थोड़ी बहुत अशांति करनी पड़े तो इसमें कोई बुराई नहीं। फिर भी किसी में दम है तो भैया से नजर मिलाकर बोले कि उन्हें नोबेल पुरस्कार लेने का हक नहीं। सामने आने पर खुद बोलने वालों की घिग्घी बंध जाएगी। और फिर भैया ने तो नहीं कहा था कि उन्हें नोबेल चाहिए, खुद ही देने वाले बांट गए तो वे क्या करें। उन्हें तो खुद सुबह उस समय पता चला जब वे सोकर उठे। पीए ने बताया था साहब आपको नोबेल पुरस्कार मिला है। बाद में पता करवाया कि यह नोबेल पुरस्कार बला क्या है।

Monday, October 5, 2009

योग्यता जितना घमण्ड तो होना ही चाहिए

आप में जितनी योग्यता है उतना आपको खुद पर घमण्ड होना ही चाहिए। यह घमण्ड ही आपको योग्यता के अनुरूप सम्मान दिला सकता है। हां, यह ख्याल जरूर रखें की यह घमण्ड किसी की भावनाओं को आहत करने के लिए न हो। वक्त जरूरत व्यक्ति का ओहदा व योग्यता ही समाज, आफिस व अन्य सार्वजनिक स्थलों पर उसे अन्य लोगों से अलग पहचान दिलाता है। इस पहचान को स्थाई रखने व इसमें निरन्तर बढ़ोतरी के लिए प्रयास करते रहना चाहिए। यही व्यक्तिगत प्रगति की निशानी है। काम व योग्यता के अनुरूप खुद के आचार-व्यवहार को नहीं ढालने से अन्य लोग या तो गाहे-बगाहे आपका उपहास बनाएंगे या आपको मूर्ख समझेंगे। वे घमण्ड न करने पर आपके साथ हल्का व्यवहार भी कर सकते हैं। इससे अनत: आप खुद को अपमानित ही महसूस करेंगे। इतना ही नहीं आपसे कम योग्यता वाले भी आप पर हावी होने से गुरेज नहीं करेंगे। इसलिए झूठी और पुरानी परम्पराओं को त्यागें और जमाने के साथ जमाने जैसा चलने की आदत बनाएं। जमाना बदल चुका है। इसे आपने नहीं उन बहुसंख्य लोगों ने बदला है जो ऐसा व्यवहार पाने के आदी हैं।

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