Saturday, March 27, 2010
अखबार सिर्फ समाचार बेचते हैं
ब्लॉग पर लिखे हुए हालांकि चंद महीने बीते हैं लेकिन लगता है कि मुद्दत हो गई है। दो वक्त की रोजी -रोटी के लिए जुगत लड़ाने को मची आपाधापी में लगता है मेरा कुछ खो रहा है। लगता है रोटी बिना रह लूंगा लेकिन लिखे बिना जीना कितना मुश्किल होगा इसका अहसास होने लगा है। अखबारी समाचारों से दूर भी तो एक दुनिया है, जहां लिखे हुए को पढ़े जाने के पैसे नहीं चुकाने होते। अखबार सिर्फ समाचार बेचते हैं लेकिन मै अपनी भावनाओं का प्रवाह बहाना चाहता हूं वह भी बिना कोई मोल। मेरी भावनाएं सिर्फ मेरी ही नहीं उन तमाम लोगों का सच है जो वे जी रहे हैं लेकिन सच से भागना चाहते हैं। सच से मत भागों सच का सामना करों। यही सच एक दिन कारवां का रूप लेगा और एक नया सुप्रभात होगा। सहर लाएगा। सब कुछ बदला बदला सा लगेगा। इस नई सुबह में अखबारों की खबरों नहीं बल्कि हमारे आपके फलसफों की दास्तां होगी।
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bhoot dino ke bad ab aap ne likhna aarmbh kar diya iske liye aapko dhanywad , kripa kar avsy kikhe
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