Saturday, May 22, 2010

ये सुबह फिर न आए, आए तो मै न रहूं

सच जी नहीं करता ऐसा देखने और सुनने को। कितनी डरावनी और कभी न भूलने वाली तस्वीरें थीं, उस विमान हादसे की जो आज सुबह (२२ मई 2010) ही मंगलौर हवाई हड्डे पर द्र्घटनाग्रस्त हो गया। भाग्यशाली वे सात जने रहे जिन्होंने मौत को मात देते हुए जीवन रूपी अमृत का रसपान किया। बाकि 159 के रोते बिलखते परिवारों के टीवी चैनलों पर चल रहे चित्र देखकर मन रोने को करने लगा। इस विभत्स और लोमहर्षक नजारे को देख तो कठोर हृदय वाले भी पिघल जाएं। सुबह करीब साढ़े छह बजे दुबई-मंगलौर के बीच चलने वाली एयर इंडिया की फ्लाइट मंगलौर हवाई अड्डे पर दुर्घटनाग्रस्त हो गई। विमान रनवे पर घसीटता हुआ आगे निकल गया और उसमें आग लग गई। पल भर में सब कुछ घटित हुआ। बस सब और हाहाकार सुनाई देने पड़ी। हादसे को घटित हुए आठ घंटे से ज्यादा बीते चुके हैं। विमान के मलबे हसे 125 शव बाहर निकाले जा चुके हैं। बचाव कार्य में जुटे कर्मियों की निगाहें अब भी इसी आशा में इधर-उधर टोह लगा रही हैं कि उन बचे सात लोगों के अलावा भी कहीं सांस की आहट मिल जाए।

Sunday, April 4, 2010

सानिया-शोएब मामले पर बौना हुआ भारतीय कानून

शोएब-सानिया का निकाह भले ही १५ अप्रेल को होना तय हो गया हो लेकिन आयशा नाम का ग्रहण उन्हें लग गया है। यह सही है कि अभी इस मामले में कई परतें उघडऩी बाकी हैं। इस सबके बीच दुखद पहलू यह है कि नारी अस्मिता के नाम पर गाहे-बगाहे आंदोलन को उतारू हो जाने वाले कथित महिला संगठनों को इस मामले में सांप क्यो सूंघा हुआ है। कानून रेंगती गति से काम क्यों कर रहा है। आयशा के साथ देर सबेर अत्याचार होना साबित हो गया तो क्या इन संगठनों के मुंह पर कालिख पुतने जैसी स्थित नहीं होगी। क्या भारतीय कानून व्यवस्था खुद को इसके लिए कभी माफ कर पाएगी।

यह सही है कि हर आरोपी येन केन प्रकारेण खुद पर लगे आरोपों से बचाव के तौर-तरीके अपनाता है। कानून के जानकार और मोटी फीस लेकर सलाह देने वाले वकील उसे बचाने के लिए ऐडी से चोटी तक का जोर लगा देते हैं। लेकिन अंतिम निर्णय न्यायालय ही सुनाता है। सानिया-शोएब मामला शायद न्यायालय और इससे नीचे कानून के रखवालों (पुलिस) के लिए एक नया अनुभव होगा। इससे पहले इतना पेचीदा प्रकरण कभी सामने नहीं आया। यह सवाल अब भी अनुत्तरीत है कि शोएब (पाकिस्तानी) विदेशी नागरिक है। उसके खिलाफ भारत में एफआईआर दर्ज भले ही कर ली गई हो पर क्या भारत को उसके खिलाफ कार्रवाई करने के अधिकार है।

आजादी के बाद मुसलमानों के लिए भारत में मुस्लिम पर्सलन लॉ जरूर बना दिया गया लेकिन उसे सिर्फ एक सीमा तक लागू किया गया। इसे भारत में शरीयत कानून की तरह पूरी तरह लागू कर दिया जाता तो ऐसे मामलों में न्याय मिलना और न्याय दिला पाना सहज हो जाता। खुद पुलिस भी यह मान रही है कि एफआईआर तो दर्ज कर ली गई है पर आगे की कार्वाई कानून का अध्ययन करने के बाद ही संभव हो पाएगा। यह अध्ययन कितने दिन में पूरा हो जाएगा इसका उनके पास कोई जवाब नहीं है।

Saturday, March 27, 2010

अखबार सिर्फ समाचार बेचते हैं

ब्लॉग पर लिखे हुए हालांकि चंद महीने बीते हैं लेकिन लगता है कि मुद्दत हो गई है। दो वक्त की रोजी -रोटी के लिए जुगत लड़ाने को मची आपाधापी में लगता है मेरा कुछ खो रहा है। लगता है रोटी बिना रह लूंगा लेकिन लिखे बिना जीना कितना मुश्किल होगा इसका अहसास होने लगा है। अखबारी समाचारों से दूर भी तो एक दुनिया है, जहां लिखे हुए को पढ़े जाने के पैसे नहीं चुकाने होते। अखबार सिर्फ समाचार बेचते हैं लेकिन मै अपनी भावनाओं का प्रवाह बहाना चाहता हूं वह भी बिना कोई मोल। मेरी भावनाएं सिर्फ मेरी ही नहीं उन तमाम लोगों का सच है जो वे जी रहे हैं लेकिन सच से भागना चाहते हैं। सच से मत भागों सच का सामना करों। यही सच एक दिन कारवां का रूप लेगा और एक नया सुप्रभात होगा। सहर लाएगा। सब कुछ बदला बदला सा लगेगा। इस नई सुबह में अखबारों की खबरों नहीं बल्कि हमारे आपके फलसफों की दास्तां होगी।

Wednesday, November 11, 2009

सभी कर्मचारी सच्चे

हमारी कम्पनी में काम करने वाले सभी कर्मचारी सच्चे है। वफादार हैं और सबके प्रति सद्भावना से भरे हैं। हम सब अपने एवं परस्पर विकास, कल्याण औ समृद्धि की जंजीर से मानसिक तथा आध्यात्मिक रूप से जुड़े हैं। मैं अपने सहकर्मियों और कम्पनी के बाकी लोगों के लिए अपने विचारों, शब्दों और कार्र्यों में प्रेम, शांति, सद्भावना प्रसारित करता हंू। हमारी कम्पनी के सभी अधिकारी, उच्चाधिकारी और सहकर्मियों सहित मुझे सभी कामों में ईश्वर का मार्गदर्शन मिल रहा है। मेरे अन्तर्मन की असीमित बुद्धिमता मेरे द्वारा सारे निर्णय लेती है। मेरे सभी सहयोगियों के पारस्परिक सम्बंधों में सद्भाव निहित है। मैं ऑफिस में जाने से पहले शांति, प्रेम और सद्भावना के संदेशवाहक भेज रहा हंू। कम्पनी में काम करने वाले सभी लोगों के दिलोदिमाग में शांति और सद्भावन कायम रहे जिनमें मैं भी शामिल हंू। मैं आपके प्रति विश्वास और भरोसे के साथ एक नए दिन की शुरुआत करने जा रहा हंू। शांति, सद्भाव और संतुलन हर समय मेरे मस्तिष्क तथा अन्तर्मन पर शासन करते हैं।

Saturday, October 31, 2009

धमाकों के धुंए से बदरंग हुई गुलाबी नगरी

देखते ही देखते गुलाबी नगरी का रंग बदल कर कालीमा सा हो गया। धुंए के गुबार ने नील गगन को ढांप लिया। शाम ढल चुकी थी, अंधियारे में सिर्फ धधकते शोले ही अहसास करा रहे थे कि कुछ अनहोनी हुई है। रफ्ता-रफ्ता हर तरफ खबर फैल गई। न केवल अनहोनी हो चुकी थी, बल्कि उसके विकराल रूप से भी सामना हो गया। धमाके दर धमाकों की गूंज ने करीब शहर के दस किलोमीटर तक के इलाके के गूंजा दिया। जहां धमाके हुए वहां के हालात की थाह पाना अब तक किसी के बस में नहीं। महज कयास के आधार पर बयानबाजी हो रही है। आज रविवार है सीतापुरा स्थित आईओसी के ऑयल टर्मिनल में गुरुवार शाम को लगी आग अब भी धधक रही है। कब तक ये शोले उठते रहेंगे इसका हर अनुमान बेमानी साबित हुआ। धू-धू कर जलते ऑयल टैंक से निकल रही ज्वाला और धुंए का गुबार बयां कर रहे हैं कि आने वाले बारह घंटे और दहशत भरे होंगे।गुरुवार को अचानक आईओसी के ऑयल डिपो में आग लग गई। देखते ही देखते धमाकों की गूंज सुनाई देने पड़ी। डिपो के भीतर के हालात तो भीतर रह गए लोगों के साथ ही फना हो गए। डिपो के बाहर करीब तीन किलोमीटर तक की परिधि के आवासीय क्षेत्र में रह रहे लोगों ने जैसे-तैसे जान बचाई। लोग बस दौड़ते गए। पता तक नहीं चला कि कितने किलोमीटर दूर निकल आए हैं। थक कर गिरने लगे तब कही जाकर रुके उनके कदम। यह सब वाकया चंद पलों में घटित हुआ। लेकिन इसके बाद धधक रही आग अब भी विकराल रूप लिए हुए है। ऑयल डिपो के 11 टैंकों में से सात का ऑयल खत्म होने पर आग भले ही थमने की ओर है पर चार टैंक अब भी ज्वालामुखी की तरह आग के गोले उगल रहे हैं। हां, शहर के हालात जरूर सामान्य हुए हैं। लेकिन जिनका घर-बार तबाह हो गया वे मुफलिस की तरह या तो सड़क किनारे पड़े हैं या कही आसारा लिए हुए हैं।

Friday, October 23, 2009

प्लीज मुझे इन सवालों के जवाब दें

1. लोग मरने के लिए ट्रेन के आगे ही छलांग क्यो लगाते हैं। ट्रक या बस के आगे क्यूं नहीं लगाते।
2. लोग मरने के लिए विषाक्त पदार्थ या जहर ही क्यों खाते हैं मिठाई क्यो नहीं खाते।
3. लोग दूसरों का बुरा करने के लिए गलत तरीका ही क्यों अपनाते हैं प्रेम से क्यों नहीं मारते।
4. धरती पर भगवान को पाने की लालसा होती है तो लोग स्वर्ग से नीचे ही क्यों आते हैं।
5. किसी ऐसे शख्स का नाम बताएं जो स्वर्ग की बजाय नरक गया हो।
6. किसी ऐसे प्राणी का नाम बताएं जो मौत से कभी न घबराता हो।
सादर...यमदूत

Monday, October 12, 2009

हम क्या कर रहे नहीं पता

यह बात सुनने में भले ही अजीब लगे कि दुनिया क्या कर रही है भारत में रहने वाले भद्र लोगों को पता है, लेकिन कोई उनसे जरा यह पूछ ले कि भारत क्या कर रहा है तो वे बगलें झाकने लगेंगे। कोई ज्यादा समझदार हुआ तो अनर्गल तर्क कर खुद को सही साबित करने से बाज नहीं आएगा। यहा बात घर-गृहस्थी की नहीं हो रही। मामला सीधे तौर पर राष्टï्रीय अस्मिता से जुड़ा हुआ है। देश कि सुरक्षा, आतंकवाद, विश्व व्यापार, विदेश नीती, परमाणु प्रसार सरीखे अनेक मसले बीते कई साल से अबूझ पहेली बने हुए हैं। देश में शासन कर चुकी और शासन कर रही वर्तमान सरकार तक इन मसलों पर कुंडली मारे हुए है। कोई इन मामलों पर सीधी सट्टï बात नहीं करता। इन मसलों पर यदा कदा आने वाले बयान सटीक कम और भरमाने वाले ज्यादा होते हैं। दुखद पहलू तो यह है कि आतंकवाद पर अमरीका क्या कर रहा है, पाकिस्तान को क्या करना चाहिए, चीन से कोई परेशानी नहीं, सब ठीक है सरीखे वक्तव्य जारी कर भारतीय राजनेता व सत्ताधारी दल यह जताने का जतन करने से नहीं चूकते कि वे सजग और सक्रिय हैं। कोई यह बताने का दुस्साहस नहीं करता कि इन सब मसलों पर भारत का एजेंडा क्या है। भारत क्या कर रहा है। भारत क्या करेगा। आज भारतीय जनता यहां के राजनेताओं के विश्व संबंधी सामान्य ज्ञान जानने नहीं बल्कि सच्चाई जानने को व्याकुल हैं। दुख तब होता है जब नेता देश में कुछ और और विदेश में जाकर कुछ और ही बयान देते हैं। यहा हमारी नीतियों को मजबूत बताते हुए शेर की सी दहाड़ निकालते हैं और बाहर जाते ही टें बोल जाते हैं। जरूरत पडऩे पर भी अमरीका व चीन के खिलाफ बोलने से कन्नी काटना, पाकिस्तान से आतंकवाद मसले पर दो टूक बात का माद्दा नहीं होना हमारे राजनेताओं को कटघरे में खड़ा कर रहा है। राजनेताओं की यही नपुंसकता हमें मानसिक गुलामी की ओर ले जाती दिख रही है।

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