शोएब-सानिया का निकाह भले ही १५ अप्रेल को होना तय हो गया हो लेकिन आयशा नाम का ग्रहण उन्हें लग गया है। यह सही है कि अभी इस मामले में कई परतें उघडऩी बाकी हैं। इस सबके बीच दुखद पहलू यह है कि नारी अस्मिता के नाम पर गाहे-बगाहे आंदोलन को उतारू हो जाने वाले कथित महिला संगठनों को इस मामले में सांप क्यो सूंघा हुआ है। कानून रेंगती गति से काम क्यों कर रहा है। आयशा के साथ देर सबेर अत्याचार होना साबित हो गया तो क्या इन संगठनों के मुंह पर कालिख पुतने जैसी स्थित नहीं होगी। क्या भारतीय कानून व्यवस्था खुद को इसके लिए कभी माफ कर पाएगी।
यह सही है कि हर आरोपी येन केन प्रकारेण खुद पर लगे आरोपों से बचाव के तौर-तरीके अपनाता है। कानून के जानकार और मोटी फीस लेकर सलाह देने वाले वकील उसे बचाने के लिए ऐडी से चोटी तक का जोर लगा देते हैं। लेकिन अंतिम निर्णय न्यायालय ही सुनाता है। सानिया-शोएब मामला शायद न्यायालय और इससे नीचे कानून के रखवालों (पुलिस) के लिए एक नया अनुभव होगा। इससे पहले इतना पेचीदा प्रकरण कभी सामने नहीं आया। यह सवाल अब भी अनुत्तरीत है कि शोएब (पाकिस्तानी) विदेशी नागरिक है। उसके खिलाफ भारत में एफआईआर दर्ज भले ही कर ली गई हो पर क्या भारत को उसके खिलाफ कार्रवाई करने के अधिकार है।
आजादी के बाद मुसलमानों के लिए भारत में मुस्लिम पर्सलन लॉ जरूर बना दिया गया लेकिन उसे सिर्फ एक सीमा तक लागू किया गया। इसे भारत में शरीयत कानून की तरह पूरी तरह लागू कर दिया जाता तो ऐसे मामलों में न्याय मिलना और न्याय दिला पाना सहज हो जाता। खुद पुलिस भी यह मान रही है कि एफआईआर तो दर्ज कर ली गई है पर आगे की कार्वाई कानून का अध्ययन करने के बाद ही संभव हो पाएगा। यह अध्ययन कितने दिन में पूरा हो जाएगा इसका उनके पास कोई जवाब नहीं है।
Sunday, April 4, 2010
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